“धरा बचाओ”आजकल, छिड़ा खूब अभियान।
पौधे
रोपे जा रहे, गली, सड़क, मैदान।
गली, सड़क, मैदान, जोश लेकिन दो दिन का।
जब
तक बने न पेड़, कीजिये पोषण
उनका।
कहे
कल्पना मित्र, जागरण ज्योत
जगाओ
होगा
तब अभियान, सफलतम “धरा बचाओ”
पावन
धरती देश की, कल तक थी
बेपीर।
कदम
कदम थीं रोटियाँ, पग पग पर था नीर।
पग
पग पर था नीर, क्षीर पूरित थीं नदियाँ
हरे भरे थे खेत, रही हैं
साक्षी सदियाँ।
सोचें
इतनी बात, आज
क्यों सूखा सावन?
झेल
रही क्यों पीर, देश की धरती पावन।
कोयल
सुर में कूकती, छेड़ मधुरतम तान।
कूक
कूक कहती यही, मेरा देश महान।
मेरा
देश महान, मगर यह सुन लो हे नर!
काट-काट कर पेड़, हमें अब करो न बेघर।
कहनी
इतनी बात, अगर
वन होंगे ओझल।
कैसे
मीठी तान, सुनाएगी
फिर कोयल।
-कल्पना रामानी