सम, दम, चल, घर, पल, कल आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं
ऐसे किसी दीर्घ को लघु नहीं कर सकते हैं| दो व्यंजन मिल कर दीर्घ मात्रिक होते हैं तो ऐसे दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते हैं
उदहारण = कमल की मात्रा १२ है इसे क१ + मल२ = १२ गिनेंगे तथा इसमें हम मलको गिरा कर १ नहीं कर सकते अर्थात कमाल को ११ अथवा १११ कदापि नहीं गिन सकते
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मुझको २२ को मुझकु२१ कर सकते हैं
आ, ई, ऊ, ए, ओ, सा, की, हू, पे, दो आदि को दीर्घ से गिरा कर लघु कर सकते हैं परन्तु ऐ, औ, अं, पै, कौ, रं आदि को दीर्घ से लघु नहीं कर सकते हैं
स्पष्ट है कि आ, ई, ऊ, ए, ओ स्वर तथा आ, ई, ऊ, ए, ओ तथा व्यंजन के योग से बने दीर्घ अक्षर को गिरा कर लघु कर सकते हैं
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अलिफ़ वस्ल = नियम है कि यदि किसी शब्द के अंत में बिना मात्रा का व्यंजन आ रहा है और उसके तुरंत बा'द का शब्द दीर्घ स्वर से शुरू हो रहा है तो व्यंजन और स्वर का योग किया जा सकता है सकता है |
उदाहरण - रात आ = रा/त/आ = २१ २ को रात+आ = राता = २२ भी किया जा सकता है
४. (२) परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे – असमय = अ/स/मय = अ१ स१ मय२ = ११२
असमय का उच्चारण करते समय 'अ' उच्चारण के बाद रुकते हैं और 'स' अलग अलग बोलते हैं और 'मय' का उच्चारण एक साथ करते हैं इसलिए 'अ' और 'स' को दीर्घ नहीं किया जा सकता है और मय मिल कर दीर्घ हो जा रहे हैं इसलिए असमय का वज्न अ१ स१ मय२ = ११२ होगा इसे २२ नहीं किया जा सकता है क्योकि यदि इसे २२ किया गया तो उच्चारण अस्मय हो जायेगा और शब्द उच्चारण दोषपूर्ण हो जायेगा|
क्रमांक ५ (१) – जब क्रमांक २ अनुसार किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन(१ मात्रिक क्रमांक १ के अनुसार) हो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है
उदाहरण – “तुम” शब्द में “'त'” '“उ'” के साथ जुड कर '“तु'” होता है(क्रमांक २ अनुसार), “तु” एक मात्रिक है और “तुम” शब्द में “म” भी एक मात्रिक है (क्रमांक १ के अनुसार) और बोलते समय “तु+म” को एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे ११ नहीं गिना जा सकता
इसके और उदाहरण देखें = यदि, कपि, कुछ, रुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं
क्रमांक ६ (१) - यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैं (क्रमांक २ अनुसार) तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे ११ नहीं गिना जा सकता
जैसे = पुरु = प+उ / र+उ = पुरु = २,
इसके और उदाहरण देखें = गिरि
६ (२) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा
जैसे – सुविचार = सु/ वि / चा / र = स+उ१ व+इ१ चा२ र१ = ११२१
(अपवाद स्वरूप कुछ बहर में विशेष स्थानों पर न्यूनतम बदलाव की छूट मिलाती है जैसे आख़िरी रुक्न पर २२ के स्थान पर ११२ होना आदि)
उदाहरण - २
हमारी ज़िंदगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है कभी तिरपाल कटता है
सियासी वार भी तलवार से कुछ कम नहीं होता
कभी कश्मीर कटता है कभी बंगाल कटता है
(मुनव्वर राना)
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
(मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन)
हमारी ज़िं / दगी का इस / तरह हर सा / ल कटता है
कभी गाड़ी / पलटती है / कभी तिरपा / ल कटता है
सियासी वा/ र भी तलवा/ र से कुछ कम / नहीं होता
कभी कश्मी/ र कटता है / कभी बंगा / ल कटता है
उदाहरण - ३
घायल पड़ा तो है वतन
फिर भी शराफत, बाप रे
(वीनस केसरी)
२२१२ / २१२२
(मुस्तफ्यलुन / मुस्तफ्यलुन )
घायल पड़ा / तो है वतन
फिर भी शरा / फत, बाप रे
अलिफ़ वस्ल को मात्रा गणना में ली जाने वाली छूट के अंतर्गत रखा जा सकता है
अन्य उदाहरण देखें -
हम और तुम (२ २१ २) को हमौर तुम (१२१२) भी किया जा सकता है
तंग आ चुके (२१ २ १२) को तंगा चुके (२२ १२) भी किया जा सकता है
तीन अशआर में एक साथ क्रमशः आ, ऊ, उ, अ, आ तथा इ अलिफ़ वस्ल का उदाहरण देखिये -
जो था आग आजकल क्या हो गया है
वो क्यों नर्म ऊन जैसा हो गया है
तब उसकी अस्ल कीमत जान पाए
जब अपना दिल पराया हो गया है
''तो क्या रोज आप ही जीतेंगे मुझसे''
बस इसके बाद झगड़ा हो गया है - (उदाहरण के लिए स्वरचित)
(१२२२, १२२२, १२२)
आग आजकल को आगाजकल अनुसार २२१२ गिना गया है
नर्म ऊन को नर्मून अनुसार २२१ गिना गया है
तब उसकी को तबुसकी अनुसार १२२ गिना गया है
जब अपना को जबपना अनुसार १२२ गिना गया है
रोज आप को रोजाप अनुसार २२१ गिना गया है
बस इसके को बसिसके अनुसार १२२ गिना गया है
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गजल में दूसरी पाबन्दी होती है - रदीफ और काफिया।
पहले शेर के दोनों मिसरे और बाकी शेरों के दूसरे मिसरे के अंतिम शब्द एक जैसे होने चाहिए। जैसे छोटी बहर के उदाहरण में गालिब की जो गजल दी है, उस पूरी गजल का हर शेर 'नहीं आती' से खत्म होता है। यह रदीफ है।
रदीफ से पहले के शब्दों में भी एकरूपता रखी जाती है, जैसे - बर नहीं आती, नजर नहीं आती, बात पर नहीं आती, रात भर नहीं आती। इसे काफिया कहते हैं। कच्चे शायर रदीफ का तो ध्यान रख लेते हैं पर कभी-कभी काफिया मिलाने में चूक जाते हैं।
द) मात्रिक बहर
एक मात्र मात्रिक बहर अरूज़ की बहरों के साथ अपवाद स्वरूप मान्यता प्राप्त है यह बहर फारसी बह्र पर नहीं वरन हिंदी के मात्रिक छ्न्द पर आधारित है
इसका रुक्न २२ होता है जो कि उर्दू बहर में मुतदारिक २१२ से निर्मित माना जाता है और बहर का नाम लिखते (अधिकतर मुतदारिक नाम ही देखने को मिलाता है)
इस मात्रिक बहर को उर्दू ग़ज़ल में मान्यता मिल गयी है और भरपूर मात्रा में असतिज़ा ने इस छंद पर ग़ज़लें कही है
इस बहर में रुक्न २२ का दोहराव करते हुए कई अर्कान बनता है जैसे -
२२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २
२२ २२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २२ २
इस बहर में २२ को १० -११ बार तक दोहरा कर २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ आदि अर्कान भी देखने को मिले हैं
अब आईये इस छंद(बहर) में मिलाने वाली छूट की बात कर लें -
इस बह्र (छंद) में सारा खेल कुल मात्रा और लयात्मकता का है| इस बह्र में दो स्वतंत्र लघु को एक दीर्घ मान सकते हैं
जैसे-
२११ २२ = २२ २२
११२ २२ = २२ २२
इस तरह ही "यहाँ वहाँ"(१२१ २२) को भी मात्रा गिन कर २२ २२ किया जाता है
यहाँ एक खास बात का ध्यान रखना होता है कि लय कहीं से भंग न हो,, यदि लय जरा सा भी भंग हो जाये तो ११ को २ नहीं गिनना चाहिए
क्रमांक ८. (४) अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं
क्रमांक ९ - विसर्ग युक्त व्यंजन दीर्ध मात्रिक होते हैं ऐसे व्यंजन को १ मात्रिक नहीं गिना जा सकता
उदाहरण = दुःख = २१ होता है इसे दीर्घ (२) नहीं गिन सकते यदि हमें २ मात्रा में इसका प्रयोग करना है तो इसके तद्भव रूप में 'दुख' लिखना चाहिए इस प्रकार यह दीर्घ मात्रिक हो जायेगा
क्रमांक ९ अनुसार विसर्ग युक्त दीर्घ व्यंजन को गिरा कर लघु नहीं कर सकते हैं
अतः यह स्पष्ट हो गया है कि हम किन दीर्घ को लघु कर सकते हैं और किन्हें नहीं कर सकते, परन्तु यह अभ्यास से ही पूर्णतः स्पष्ट हो सकता है जैसे कुछ अपवाद को समझने के लिए अभ्यास आवश्यक है|
उदाहरण स्वरूप एक अपवाद देखें = "क्रमांक ३ अनुसार" मात्रा गिराने के नियम में बताया गया है कि 'ऐ' स्वर तथा 'ऐ' स्वर युक्त व्यंजन को नहीं गिरा सकते है| जैसे - "जै" २ को गिरा कर लघु नहीं कर सकते परन्तु अपवाद स्वरूप "है" "हैं" और "मैं" को दीर्घ मात्रिक से गिरा कर लघु मात्रिक करने की छूट है
१) हम किसी व्यक्ति अथवा स्थान के नाम की मात्रा कदापि नहीं गिरा सकते
उदाहरण - (|)- "मीरा" शब्द में अंत में "रा" है जो क्रमांक ३ अनुसार गिर सकता है और शब्द के अंत में आ रहा है इसलिए नियमानुसार इसे गिरा सकते हैं परन्तु यह एक महिला का नाम है इसलिए संज्ञा है और इस कारण हम मीरा(२२) को "मीर" उच्चारण करते हुए २१ नहीं गिन सकते| "मीरा" शब्द सदैव २२ ही रहेगा इसकी मात्रा किसी दशा में नहीं गिरा सकते | यदि ऐसा करेंगे तो शेअर दोष पूर्ण हो जायेगा
(||)- "आगरा" शब्द में अंत में "रा" है जो क्रमांक ३ अनुसार गिरा सकते है और शब्द के अंत में "रा" आ रहा है इसलिए नियमानुसार गिरा सकते हैं परन्तु यह एक स्थान का नाम है इसलिए संज्ञा है और इस कारण हम आगरा(२१२) को "आगर" उच्चारण करते हुए २२ नहीं गिन सकते| "आगरा" शब्द सदैव २१२ ही रहेगा | इसकी मात्रा किसी दशा में नहीं गिरा सकते | यदि ऐसा करेंगे तो शेअर दोष पूर्ण हो जायेगा
२) ऐसा माना जाता है कि हिन्दी के तत्सम शब्द की मात्रा भी नहीं गिरानी चाहिए
उदाहरण - विडम्बना शब्द के अंत में "ना" है जो क्रमांक ३ अनुसार गिरा सकते है और शब्द के अंत में "ना" आ रहा है इसलिए नियमानुसार गिरा सकते हैं परन्तु विडम्बना एक तत्सम शब्द है इसलिए इसकी मात्रा नहीं गिरानी चाहिए परन्तु अब इस नियम में काफी छूट ले जाने लगे है क्योकि तद्भव शब्दों में भी खूब बदलाव हो रहा है और उसके तद्भव रूप से भी नए शब्द निकालने लगे हैं
उदाहरण - दीपावली एक तत्सम शब्द है जिसका तद्भव रूप दीवाली है मगर समय के साथ इसमें भी बदलाव हुआ है और दीवाली में बदलाव हो कर दिवाली शब्द प्रचलन में आया तो अब दिवाली को तद्भव शब्द माने तो उसका तत्सम शब्द दीवाली होगा इस इस अनुसार दीवाली को २२१ नहीं करना चाहिए मगर ऐसा खूब किया जा रहा है और लगभग स्वीकार्य है | मगर ध्यान रहे कि मूल शब्द दीपावली (२२१२) को गिरा कर २२११ नहीं करना चाहिए
यह जानकारी "ओपन बुक्स ऑनलाइन(O B O)"से साभार ली गई है। अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर जाइए-
http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5170231:Topic:288813
ऐसे किसी दीर्घ को लघु नहीं कर सकते हैं| दो व्यंजन मिल कर दीर्घ मात्रिक होते हैं तो ऐसे दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते हैं
उदहारण = कमल की मात्रा १२ है इसे क१ + मल२ = १२ गिनेंगे तथा इसमें हम मलको गिरा कर १ नहीं कर सकते अर्थात कमाल को ११ अथवा १११ कदापि नहीं गिन सकते
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मुझको २२ को मुझकु२१ कर सकते हैं
आ, ई, ऊ, ए, ओ, सा, की, हू, पे, दो आदि को दीर्घ से गिरा कर लघु कर सकते हैं परन्तु ऐ, औ, अं, पै, कौ, रं आदि को दीर्घ से लघु नहीं कर सकते हैं
स्पष्ट है कि आ, ई, ऊ, ए, ओ स्वर तथा आ, ई, ऊ, ए, ओ तथा व्यंजन के योग से बने दीर्घ अक्षर को गिरा कर लघु कर सकते हैं
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अलिफ़ वस्ल = नियम है कि यदि किसी शब्द के अंत में बिना मात्रा का व्यंजन आ रहा है और उसके तुरंत बा'द का शब्द दीर्घ स्वर से शुरू हो रहा है तो व्यंजन और स्वर का योग किया जा सकता है सकता है |
उदाहरण - रात आ = रा/त/आ = २१ २ को रात+आ = राता = २२ भी किया जा सकता है
४. (२) परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे – असमय = अ/स/मय = अ१ स१ मय२ = ११२
असमय का उच्चारण करते समय 'अ' उच्चारण के बाद रुकते हैं और 'स' अलग अलग बोलते हैं और 'मय' का उच्चारण एक साथ करते हैं इसलिए 'अ' और 'स' को दीर्घ नहीं किया जा सकता है और मय मिल कर दीर्घ हो जा रहे हैं इसलिए असमय का वज्न अ१ स१ मय२ = ११२ होगा इसे २२ नहीं किया जा सकता है क्योकि यदि इसे २२ किया गया तो उच्चारण अस्मय हो जायेगा और शब्द उच्चारण दोषपूर्ण हो जायेगा|
क्रमांक ५ (१) – जब क्रमांक २ अनुसार किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन(१ मात्रिक क्रमांक १ के अनुसार) हो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है
उदाहरण – “तुम” शब्द में “'त'” '“उ'” के साथ जुड कर '“तु'” होता है(क्रमांक २ अनुसार), “तु” एक मात्रिक है और “तुम” शब्द में “म” भी एक मात्रिक है (क्रमांक १ के अनुसार) और बोलते समय “तु+म” को एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे ११ नहीं गिना जा सकता
इसके और उदाहरण देखें = यदि, कपि, कुछ, रुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं
क्रमांक ६ (१) - यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैं (क्रमांक २ अनुसार) तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे ११ नहीं गिना जा सकता
जैसे = पुरु = प+उ / र+उ = पुरु = २,
इसके और उदाहरण देखें = गिरि
६ (२) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा
जैसे – सुविचार = सु/ वि / चा / र = स+उ१ व+इ१ चा२ र१ = ११२१
(अपवाद स्वरूप कुछ बहर में विशेष स्थानों पर न्यूनतम बदलाव की छूट मिलाती है जैसे आख़िरी रुक्न पर २२ के स्थान पर ११२ होना आदि)
उदाहरण - २
हमारी ज़िंदगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है कभी तिरपाल कटता है
सियासी वार भी तलवार से कुछ कम नहीं होता
कभी कश्मीर कटता है कभी बंगाल कटता है
(मुनव्वर राना)
१२२२ / १२२२ / १२२२ / १२२२
(मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन)
हमारी ज़िं / दगी का इस / तरह हर सा / ल कटता है
कभी गाड़ी / पलटती है / कभी तिरपा / ल कटता है
सियासी वा/ र भी तलवा/ र से कुछ कम / नहीं होता
कभी कश्मी/ र कटता है / कभी बंगा / ल कटता है
उदाहरण - ३
घायल पड़ा तो है वतन
फिर भी शराफत, बाप रे
(वीनस केसरी)
२२१२ / २१२२
(मुस्तफ्यलुन / मुस्तफ्यलुन )
घायल पड़ा / तो है वतन
फिर भी शरा / फत, बाप रे
अलिफ़ वस्ल को मात्रा गणना में ली जाने वाली छूट के अंतर्गत रखा जा सकता है
अन्य उदाहरण देखें -
हम और तुम (२ २१ २) को हमौर तुम (१२१२) भी किया जा सकता है
तंग आ चुके (२१ २ १२) को तंगा चुके (२२ १२) भी किया जा सकता है
तीन अशआर में एक साथ क्रमशः आ, ऊ, उ, अ, आ तथा इ अलिफ़ वस्ल का उदाहरण देखिये -
जो था आग आजकल क्या हो गया है
वो क्यों नर्म ऊन जैसा हो गया है
तब उसकी अस्ल कीमत जान पाए
जब अपना दिल पराया हो गया है
''तो क्या रोज आप ही जीतेंगे मुझसे''
बस इसके बाद झगड़ा हो गया है - (उदाहरण के लिए स्वरचित)
(१२२२, १२२२, १२२)
आग आजकल को आगाजकल अनुसार २२१२ गिना गया है
नर्म ऊन को नर्मून अनुसार २२१ गिना गया है
तब उसकी को तबुसकी अनुसार १२२ गिना गया है
जब अपना को जबपना अनुसार १२२ गिना गया है
रोज आप को रोजाप अनुसार २२१ गिना गया है
बस इसके को बसिसके अनुसार १२२ गिना गया है
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गजल में दूसरी पाबन्दी होती है - रदीफ और काफिया।
पहले शेर के दोनों मिसरे और बाकी शेरों के दूसरे मिसरे के अंतिम शब्द एक जैसे होने चाहिए। जैसे छोटी बहर के उदाहरण में गालिब की जो गजल दी है, उस पूरी गजल का हर शेर 'नहीं आती' से खत्म होता है। यह रदीफ है।
रदीफ से पहले के शब्दों में भी एकरूपता रखी जाती है, जैसे - बर नहीं आती, नजर नहीं आती, बात पर नहीं आती, रात भर नहीं आती। इसे काफिया कहते हैं। कच्चे शायर रदीफ का तो ध्यान रख लेते हैं पर कभी-कभी काफिया मिलाने में चूक जाते हैं।
द) मात्रिक बहर
एक मात्र मात्रिक बहर अरूज़ की बहरों के साथ अपवाद स्वरूप मान्यता प्राप्त है यह बहर फारसी बह्र पर नहीं वरन हिंदी के मात्रिक छ्न्द पर आधारित है
इसका रुक्न २२ होता है जो कि उर्दू बहर में मुतदारिक २१२ से निर्मित माना जाता है और बहर का नाम लिखते (अधिकतर मुतदारिक नाम ही देखने को मिलाता है)
इस मात्रिक बहर को उर्दू ग़ज़ल में मान्यता मिल गयी है और भरपूर मात्रा में असतिज़ा ने इस छंद पर ग़ज़लें कही है
इस बहर में रुक्न २२ का दोहराव करते हुए कई अर्कान बनता है जैसे -
२२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २
२२ २२ २२ २२ २२
२२ २२ २२ २२ २२ २
इस बहर में २२ को १० -११ बार तक दोहरा कर २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ आदि अर्कान भी देखने को मिले हैं
अब आईये इस छंद(बहर) में मिलाने वाली छूट की बात कर लें -
इस बह्र (छंद) में सारा खेल कुल मात्रा और लयात्मकता का है| इस बह्र में दो स्वतंत्र लघु को एक दीर्घ मान सकते हैं
जैसे-
२११ २२ = २२ २२
११२ २२ = २२ २२
इस तरह ही "यहाँ वहाँ"(१२१ २२) को भी मात्रा गिन कर २२ २२ किया जाता है
यहाँ एक खास बात का ध्यान रखना होता है कि लय कहीं से भंग न हो,, यदि लय जरा सा भी भंग हो जाये तो ११ को २ नहीं गिनना चाहिए
क्रमांक ८. (४) अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं
क्रमांक ९ - विसर्ग युक्त व्यंजन दीर्ध मात्रिक होते हैं ऐसे व्यंजन को १ मात्रिक नहीं गिना जा सकता
उदाहरण = दुःख = २१ होता है इसे दीर्घ (२) नहीं गिन सकते यदि हमें २ मात्रा में इसका प्रयोग करना है तो इसके तद्भव रूप में 'दुख' लिखना चाहिए इस प्रकार यह दीर्घ मात्रिक हो जायेगा
क्रमांक ९ अनुसार विसर्ग युक्त दीर्घ व्यंजन को गिरा कर लघु नहीं कर सकते हैं
अतः यह स्पष्ट हो गया है कि हम किन दीर्घ को लघु कर सकते हैं और किन्हें नहीं कर सकते, परन्तु यह अभ्यास से ही पूर्णतः स्पष्ट हो सकता है जैसे कुछ अपवाद को समझने के लिए अभ्यास आवश्यक है|
उदाहरण स्वरूप एक अपवाद देखें = "क्रमांक ३ अनुसार" मात्रा गिराने के नियम में बताया गया है कि 'ऐ' स्वर तथा 'ऐ' स्वर युक्त व्यंजन को नहीं गिरा सकते है| जैसे - "जै" २ को गिरा कर लघु नहीं कर सकते परन्तु अपवाद स्वरूप "है" "हैं" और "मैं" को दीर्घ मात्रिक से गिरा कर लघु मात्रिक करने की छूट है
१) हम किसी व्यक्ति अथवा स्थान के नाम की मात्रा कदापि नहीं गिरा सकते
उदाहरण - (|)- "मीरा" शब्द में अंत में "रा" है जो क्रमांक ३ अनुसार गिर सकता है और शब्द के अंत में आ रहा है इसलिए नियमानुसार इसे गिरा सकते हैं परन्तु यह एक महिला का नाम है इसलिए संज्ञा है और इस कारण हम मीरा(२२) को "मीर" उच्चारण करते हुए २१ नहीं गिन सकते| "मीरा" शब्द सदैव २२ ही रहेगा इसकी मात्रा किसी दशा में नहीं गिरा सकते | यदि ऐसा करेंगे तो शेअर दोष पूर्ण हो जायेगा
(||)- "आगरा" शब्द में अंत में "रा" है जो क्रमांक ३ अनुसार गिरा सकते है और शब्द के अंत में "रा" आ रहा है इसलिए नियमानुसार गिरा सकते हैं परन्तु यह एक स्थान का नाम है इसलिए संज्ञा है और इस कारण हम आगरा(२१२) को "आगर" उच्चारण करते हुए २२ नहीं गिन सकते| "आगरा" शब्द सदैव २१२ ही रहेगा | इसकी मात्रा किसी दशा में नहीं गिरा सकते | यदि ऐसा करेंगे तो शेअर दोष पूर्ण हो जायेगा
२) ऐसा माना जाता है कि हिन्दी के तत्सम शब्द की मात्रा भी नहीं गिरानी चाहिए
उदाहरण - विडम्बना शब्द के अंत में "ना" है जो क्रमांक ३ अनुसार गिरा सकते है और शब्द के अंत में "ना" आ रहा है इसलिए नियमानुसार गिरा सकते हैं परन्तु विडम्बना एक तत्सम शब्द है इसलिए इसकी मात्रा नहीं गिरानी चाहिए परन्तु अब इस नियम में काफी छूट ले जाने लगे है क्योकि तद्भव शब्दों में भी खूब बदलाव हो रहा है और उसके तद्भव रूप से भी नए शब्द निकालने लगे हैं
उदाहरण - दीपावली एक तत्सम शब्द है जिसका तद्भव रूप दीवाली है मगर समय के साथ इसमें भी बदलाव हुआ है और दीवाली में बदलाव हो कर दिवाली शब्द प्रचलन में आया तो अब दिवाली को तद्भव शब्द माने तो उसका तत्सम शब्द दीवाली होगा इस इस अनुसार दीवाली को २२१ नहीं करना चाहिए मगर ऐसा खूब किया जा रहा है और लगभग स्वीकार्य है | मगर ध्यान रहे कि मूल शब्द दीपावली (२२१२) को गिरा कर २२११ नहीं करना चाहिए
यह जानकारी "ओपन बुक्स ऑनलाइन(O B O)"से साभार ली गई है। अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर जाइए-
http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5170231:Topic:288813
3 comments:
अत्यंत उपयोगी लेख ।
क्या ग़ज़ल के पहले शेर में मात्रा को गिरा सकते है?,
क्या शऊर को 1(श), 2(ऊर) गिन सकते हैं ? अग्रिम धन्यवाद !
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