भारत भू पर राम थे त्रेता युग अवतार।
करने आए भूमि पर दुष्टों का संहार।
दुष्टों का संहार, स्वयं को जन से जोड़ा।
सिय का थामा हाथ धनुष शिवजी का तोड़ा।
नवमी तिथि पर पर्व, चैत्र में मनता घर-घर
जन्मे थे श्री राम, इसी दिन भारत भू पर।
तुलसी की चौपाइयाँ, घर-घर के हों गीत।
पुरुषोत्तम श्री राम की, जोड़ें मन से प्रीत।
जोड़ें मन से प्रीत, राम धुन हर दिन गूँजे
रामायण को भाव, भक्ति से जन-जन पूजे।
होगा सुख कल्याण, दृष्टि से समदरसी की
भाव, भावना, भक्ति, अनुसरित हो तुलसी की।
भव के द्वारे बंद कर, अंतर के पट खोल।
समाधिस्थ हो राम की, एक बार जय बोल।
एक बार जय बोल, स्वर्ग के द्वार खुलेंगे
मृत्युलोक से दूर, दैव्य से आप जुड़ेंगे।
कहनी इतनी बात, राम जी सबको तारे।
अंतर के पट खोल, बंद कर भव के द्वारे।
-कल्पना रामानी
1 comment:
भव के द्वारे बंद कर, अंतर के पट खोल।
समाधिस्थ हो राम की, एक बार जय बोल।
..बहुत बढ़िया राममयी रचना ,,
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