Friday, 19 April 2013

फिर से आओ राम जी...


फिर से आओ राम जी तुम्हें पुकारे देश।
मर्यादा के मनुष में चिह्न नहीं अब शेष।
चिह्न नहीं अब शेष, संस्कृति भूले अपनी
रही साथ मद, लोभ, स्वार्थ की माला जपनी।    
काटो तम का जाल, ज्ञान का दीप जलाओ
तुम्हें पुकारे देश, राम जी! फिर से आओ।
 
कलियुग में श्री राम से, पुत्र कहाँ हैं आज।
पित्राज्ञा से वन गमन, किया छोडकर ताज।
किया छोडकर ताज, राजसी साधन त्यागे
लखन सिया कर जोड़, चल दिये आगे-आगे।
वैसे भार्या, भ्रात, कहाँ हैं अब इस युग में
रिश्ते-नाते, प्रेम, खो गए सब कलियुग में।   

-कल्पना रामानी   


     

No comments:

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

जंगल में मंगल

जंगल में मंगल

प्रेम की झील

प्रेम की झील