अंतर्ज्वाला देश को, जला रही है आज।
अपने ही सिर देखना, सभी चाहते ताज।
सभी चाहते ताज, देश के लिए न क
सिर्फ स्वार्थ के गीत, गा रहा देखें वो ही।
कहे 'कल्पना' मीत, सभी को मिले निवाला
स्वर्ग बनाएँ देश, बुझाकर अंतर्ज्वाला।
भूल न जाएँ आज हम, वीरों के बलिदान।
आज़ादी के वास्ते, किए निछावर प्राण।
किए निछावर प्राण, क्रांति के अंकुर रोपे
माँ की गोद उजाड़, तत्व निज, माँ को सौंपे।
कहे कल्पना दीप, याद का पुनः जलाएँ
वीरों के बलिदान, आज हम भूल न जाएँ।
-कल्पना रामानी
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