चाह हमारी हो यही, करे तरक्की देश।
कदम बढ़ाएँ साथ में, अलग लाख परिवेश।
अलग लाख परिवेश,एकजुट हो हर कोना
बोएँ ऐसे बीज, कि धरती उगले सोना।
कहनी इतनी बात, भुला कर निजता सारी
करे तरक्की देश, यही हो चाह हमारी।
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जन-जन को शिक्षित करें, शिक्षा है वरदान
देकर पाएँ दो गुना, विद्या ऐसा दान।
विद्या ऐसा दान, कभी भी व्यर्थ न जाए
उन्नत बने समाज, आप का मान बढ़ाए।
सीधी सी है बात, अन्य हैं फीके सब धन
होता रहे विकास, अगर हो शिक्षित जन-जन।
-कल्पना रामानी
2 comments:
कल्पना जी, बहुत सुन्दर.
- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
कहनी इतनी बात, भुला दें निजता सारी/करे तरक्की देश, यही हो चाह हमारी........क्या खूब अभिलाषा ....वाह !
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