Friday 13 July 2012

चाह हमारी हो यही

















चाह हमारी हो यही, करे तरक्की देश। 
कदम बढ़ाएँ साथ में, अलग लाख परिवेश।
अलग लाख परिवेश,एकजुट हो हर कोना
बोएँ ऐसे बीज, कि धरती उगले सोना।
कहनी इतनी बात, भुला कर निजता सारी
करे तरक्की देश, यही हो चाह हमारी।
.........................
जन-जन को शिक्षित करें, शिक्षा है वरदान
देकर पाएँ दो गुना, विद्या ऐसा  दान।
विद्या ऐसा दान, कभी भी व्यर्थ न जाए
उन्नत बने समाज, आप का मान बढ़ाए।
सीधी सी है बात, अन्य हैं फीके सब धन
होता रहे विकास, अगर हो शिक्षित जन-जन।

-कल्पना रामानी

2 comments:

त्रिलोक सिंह ठकुरेला said...

कल्पना जी, बहुत सुन्दर.

- त्रिलोक सिंह ठकुरेला

Unknown said...

कहनी इतनी बात, भुला दें निजता सारी/करे तरक्की देश, यही हो चाह हमारी........क्या खूब अभिलाषा ....वाह !

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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