Saturday 14 July 2012

हरसिंगार

फूलों से हो दोस्ती, कुदरत से हो प्यार।
एक पात्र मिट्टी भरें, रोपें हरसिंगार।
रोपें हरसिंगार, सींचिए नित्य सलिल से,
महकाएँ घर द्वार, मिले खुशबू हर पल से।
करें प्रकृति को मुक्त, प्रदूषित  कटु शूलों से,
कुदरत से हो प्यार, दोस्ती हो फूलों से।


नाम तुम्हारे हैं कई, प्यारे हरसिंगार।
बगिया में सबसे अलग, तेरी महक अपार।
तेरी महक अपार, रूप की शान निराली,
दुलराकर हर रोज़, करूँ मन से रखवाली।   
झरते सारी रात, निरखते चाँद सितारे,
प्यारे हरसिंगार, कई हैं नाम तुम्हारे। 



लाई हूँ मैं गाँव से, साथ तुम्हारी पौध। 
जहाँ रहूँगी रोपकर, काटूँगी अवरोध।
काटूँगी अवरोध, तुझे सींचूँगी मन से।
पारिजात तुम दूर, न होगे इस जीवन से।
कभी न पाई भूल, शहर मैं जब से आई,
साथ तुम्हारी पौध, गाँव से अब हूँ लाई।


हर दिन तुझको ढूंढती, गली,सड़क,बाजार।
किस जहान में खो गए, प्यारे हरसिंगार।
प्यारे हरसिंगार, रात में देखा सपना,
तेरे फूलों संग, सजा था मेरा अंगना।
उतरा था आकाश, चूमने फूलों का तन,
सपने में भी मीत, ढूंढती तुझको हर दिन।


स्वागत करते प्रात में, खिलते झरते रात।
बीन बीन कटता दिवस, होती रहती बात।
होती रहती बात, तुझे दामन में भरती,
कभी सजाती द्वार, कभी पूजा में धरती।
पारिजात सच बोल, डाल पर क्यों न ठहरते,
खिलते झरते रात, भोर में स्वागत करते।














-कल्पना रामानी

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