Sunday 28 October 2012

शीतल किरणें चंद्र की



शीतल किरणें चंद्र की, बिखरीं चारों ओर।
शरद पूर्णिमा रात का, उत्सव है पुरजोर।
उत्सव है पुरजोर, लोग सब छत पर धाए
मिल अपनों के साथ,दूध के पात्र सजाए।
रसमय रजनी रूप, कर रहा तन मन बेकल
बिखरी चारों ओर, चंद्र की किरणें शीतल।    

दूध नहाई पूर्णिमा, शरद परी की रात।
जन जन पर्व मना रहा, छत पर रखकर भात।
छत पर रखकर भात, मधुर रस घोले रैना।
सजी चाँदनी आज, लिए कजरारे नैना।
शीतल सुरभित मंद, हवा तन मन को भाई।
शरद परी की रात, पूर्णिमा दूध नहाई।

-कल्पना रामानी

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