जिस घर सजती वाटिका, संग स्नेह के फूल।
उस घर क्यों होंगे भला, बाधाओं के शूल।
गृहस्वामी के कष्ट, चुभन से बढ़ते जाते।
कहनी इतनी बात, काँपते कांटे थर थर
संग स्नेह के फूल, वाटिका सजती जिस घर।
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घर आँगन की वाटिका, खिली खिली है आज।
माली ही यह जानता, क्या है इसका राज़।
क्या है इसका राज़, उसी ने अंकुर सींचे
अब तो फल का स्वाद, मिल रहा आँखें मींचे।
श्रम से ही हों मीत, मुरादें पूरी मन की
खिली रहे चिरकाल, वाटिका घर आँगन की।
-कल्पना रामानी
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