नया वर्ष, ईश्वर करे, बने सभी का मीत।
बने सभी का मीत, प्रीत के अंकुर फूटें।
खुशहाली के पेड़, उगें फल मिलकर लूटें।
आएगी नव भोर, विश्व की, अर्ध निशा में
गूँज रहा संगीत, धूम है दिशा
दिशा में।
शहरों से की प्रार्थना, गाँवों ने इस
बार। नए बरस को बंधुओं, भेजो हमरे द्वार।
भेजो हमरे द्वार, तरक्की हम भी चाहें।
सूखे रहें न खेत, स्वर्ण सी फसल उगाएँ।
बुत बनकर चुप ओढ़, खड़े हो क्यों बहरों से?
गाँवों ने इस बार प्रार्थना की शहरों से।
-कल्पना रामानी
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