Saturday 2 February 2013

हरियाली में घुल गए


हरियाली में घुल गए, पीले पीले रंग।
ऋतु परिवर्तन देखकर, डाली-डाली दंग।
डाली-डाली दंग, शीत ऋतु हुई पुरानी
आया पतझड़ पास, सुनाने नई कहानी।
बिन पत्तों के पेड़, दिख रहे खाली-खाली
ओढ़ पीत परिधान, छिप गई है हरियाली।
 
पेड़ों पर अब पीतिमा, कर बैठी अधिकार।
पतझड़ ने आकर किया, हरीतिमा पर वार।
हरीतिमा पर वार, रंग कुदरत ने बदला
देख सृष्टि सौंदर्य,  आज मन फिर से मचला।
बिखरी हैं बिन पात, लताएँ भी मेड़ों पर।
पूर्ण पीत परिधान दिख रहे हैं पेड़ों पर।
 
पल पल झड़ते पात हैं, सूनी है हर डाल।
पतझड़ आया पूछने, अब मौसम का हाल।
अब मौसम का हाल, हवाओं को उकसाया
लॉन, खेत, उद्यान, सभी का रंग उड़ाया।
हरियाली है लुप्त, हुआ सब धूमिल धूमिल
खाली है हर डाल, झड़ रहे पत्ते पल पल। 
  

- कल्पना रामानी

1 comment:

surenderpal vaidya said...

बहुत सुन्दर कुण्डलिया।

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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