Sunday 10 February 2013

ऋतु बसंत के संग



पलकें कोयल की खुलीं, ऋतु बसंत के संग।
कुहू कुहू की तान से, कुदरत भी है दंग।
कुदरत भी है दंग, उमंगित है अमराई
आम्र बौर से आज, हो रही गोद भराई।
झूम रहे तरु पात, हर तरफ खुशियाँ झलकें
ऋतु बसंत के साथ, खुलीं कोयल की पलकें।
  
उतरी भू पर स्वर्ग से, एक अप्सरा आज।
देखा शोभित शीश पर, ऋतु बसंत का ताज।
ऋतु बसंत का ताज, रंग थे तने प्यारे!
आल्हादित मन-प्राण, हो उठे देख नज़ारे।
सम्मुख थी साक्षात, सलोनी रूप सुंदरी।
एक अप्सरा आज, स्वर्ग से भू पर उतरी।

सोने सी सरसों सजी, मुसकाया हर खेत
अद्भुत रूप बसंत का,  धर आया है चैत।
धर आया है चैत, धरा पर देखी जन्नत।
बाँट रही दिल खोल, नज़ारे प्यारी कुदरत।
रंगों की यह रास, दिखे जादू टोने सी।
बागों में है सब्ज़, यहाँ पर है सोने सी।
    
अमराई में कोकिला, कौआ घर के पास।
लेकिन दोनों दूत हैं, ऋतु बसंत के खास।
ऋतु बसंत के खास, कोकिला बागों हँसती।
कौआ सबके साथ, हर गली इसकी मस्ती
कहनी इतनी बात, न कमतर कौआ भाई
घर इससे गुलजार, कोकिला से अमराई।

-कल्पना रामानी

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