ऋतु परिवर्तन अटल हैं, शीत बढ़े या ताप।
जैसे भी बदलाव हों, बदल जाइए आप।
बदल जाइए आप, अगर मौसम गर्मी का।
खाना खाएँ अल्प, बढ़े सेवन पानी का।
ऋतु बोले जो बात, बना लें वैसा ही मन
शीत बढ़े या ताप, अटल हैं ऋतु परिवर्तन।
नभचर, थलचर, जीव सब, गर्मी से हैरान।
सड़कों के सीने फटे, हाँफ रहे मैदान।
हाँफ रहे मैदान, जलाशय प्यासे सारे
फूल पात उद्यान, बिना जल बाजी हारे।
अपनाएँ वो रीत, कंठ ज्यों हों सबके तर
पाएँ जीवनदान, जीव सब नभचर थलचर।
-कल्पना रामानी
No comments:
Post a Comment