Monday 10 June 2013

बादल आए दूर से














बादल आए दूर से, लेकर यह पैगाम।
मानसून इस बार है, धरती माँ के नाम।
धरती माँ के नाम, नहीं अब सूखा होगा
शेष न होगी प्यास, न कोई भूखा होगा।
हरा भरा इस बार, दिखेगा माँ का आँचल।
लेकर यह पैगाम, दूर से आए बादल।


मौसम है बरसात का, बूँदों की बारात।
ढ़ोल बजाने आ गए, बादल आधी रात।
बादल आधी रात, हो गई पुलकित धरती
ओढ़ चुनरिया सब्ज़, गोद में जलकण भरती।
बिखरे रंग अपार, हुआ खुशियों का संगम
बूँदें लाया साथ,  आज  बरसाती मौसम।
 
हुई विदाई ग्रीष्म की, आया वर्षाकाल।
बूँदों की बौछार से, जन जन हुआ निहाल।
जन जन हुआ निहाल, हुआ घर घर में स्वागत।
शीतल चली बयार, मिली तन मन को राहत।
जल स्रोतों में धार, बरसती बरखा लाई।
आया वर्षाकाल, ग्रीष्म की हुई विदाई।


-कल्पना रामानी

8 comments:

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.

shashi purwar said...

बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (11-06-2013) के अनवरत चलती यह यात्रा बारिश के रंगों में .......! चर्चा मंच अंक-1273 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार

अज़ीज़ जौनपुरी said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह, वातावरण मनोरम करती रचना।

अरुणा said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति कल्पना जी

दिगम्बर नासवा said...

लाजवाब कुण्डलियाँ ... मौसम बो बाखूबी उतारा हैं इन छंदों में ..

Anupama Tripathi said...

हुई विदाई ग्रीष्म की, आया वर्षाकाल।
बूँदों की बौछार से, जन जन हुआ निहाल।

बहुत सुंदर कुंडलियाँ ...

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत खुबसूरत मनभावन कुण्डलियाँ !
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post: प्रेम- पहेली
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

जंगल में मंगल

जंगल में मंगल

प्रेम की झील

प्रेम की झील