बादल आए दूर से, लेकर यह पैगाम।
मानसून इस बार है, धरती माँ के नाम।
धरती माँ के नाम, नहीं अब सूखा होगा
शेष न होगी प्यास, न कोई भूखा होगा।
हरा भरा इस बार, दिखेगा माँ का आँचल।
लेकर यह पैगाम, दूर से आए बादल।
मौसम है बरसात का, बूँदों की बारात।
ढ़ोल बजाने आ गए, बादल आधी रात।बादल आधी रात, हो गई पुलकित धरती
ओढ़ चुनरिया सब्ज़, गोद में जलकण भरती।
बिखरे रंग अपार, हुआ खुशियों का संगम
बूँदें लाया साथ, आज बरसाती मौसम।
हुई विदाई ग्रीष्म की, आया वर्षाकाल।
बूँदों की बौछार से, जन जन हुआ निहाल।
जन जन हुआ निहाल, हुआ घर घर में स्वागत।
शीतल चली बयार, मिली तन मन को राहत।
जल स्रोतों में धार, बरसती बरखा लाई।
आया वर्षाकाल, ग्रीष्म की हुई विदाई।
-कल्पना रामानी
8 comments:
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.
बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (11-06-2013) के अनवरत चलती यह यात्रा बारिश के रंगों में .......! चर्चा मंच अंक-1273 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती
वाह, वातावरण मनोरम करती रचना।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति कल्पना जी
लाजवाब कुण्डलियाँ ... मौसम बो बाखूबी उतारा हैं इन छंदों में ..
हुई विदाई ग्रीष्म की, आया वर्षाकाल।
बूँदों की बौछार से, जन जन हुआ निहाल।
बहुत सुंदर कुंडलियाँ ...
बहुत खुबसूरत मनभावन कुण्डलियाँ !
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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