Monday 7 April 2014

सिर पर जब सूरज चढ़े


सिर पर जब सूरज चढ़े, बाहर धरें न पाँव।
पहनें सूती वस्त्र औ, बैठें शीतल छाँव।
बैठें शीतल छाँ, कीजिये भोजन हल्का
आधा करें अनाज, खूब हो सेवन फल का।  
कहनी इतनी बात, ताप से रहें सँभलकर
बाहर धरें न पाँव, चढ़े जब सूरज सिर पर।


गर्मी का इक रूप ये, लगता बड़ा हसीन।
सुबह बुलाती बाग में, दुपहर घर में लीन।
दुपहर घर में लीन, सुलाते कूलर ए॰सी॰
उतना ही आनंद, जहाँ क्षमता हो जैसी।
कहनी इतनी बात, न कोई मौसम फीका
लगता बड़ा हसीन, रूप यह भी  गर्मी का।

-कल्पना रामानी

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--कल्पना रामानी

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