धूप चदरिया बिछ गई, चलो भगाएँ शीत।
दर्शन देने आ गया, दिनकर बनकर मीत।
दिनकर बनकर मीत, चटाई आँगन डालें
हरे मटर, अमरूद, बेर सब मिलकर खा लें।
पिंटू, चिंटू, राम, घरों से निकलो भैया
चलो भगाएँ शीत, बिछ रही धूप चदरिया।
सूरज देवा आजकल, हो जाते हैं लेट।
भर सर्दी में धूप के, बढ़ा लिए हैं रेट।
बढ़ा लिए हैं रेट, छिपाकर किरणें सारी
हो जाते हैं ओट, न मानें बात हमारी।
करें प्रार्थना ध्यान, और किरणों की सेवा
तब फिर शायद लेट, न आएँ सूरज देवा।
जब से डाला शीत ने, आकर पुनः पड़ाव।
गाँव गाँव दिखने लगे, जलते हुए अलाव।
जलते हुए अलाव, स्वाद मेवों का भाया
गाजर हलवा दूध, सूप ने रंग जमाया।
मावे के मिष्ठान्न, लग रहे अच्छे सबसे
आकर पुनः पड़ाव, शीत ने डाला जबसे।
- कल्पना रामानी
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