Thursday 13 December 2012

धीरे धीरे शीत की




धीरे-धीरे शीत की, लहर चली चहुं ओर।
ज़ीरो डिग्री में जमें,दिवस रात औ भोर।
दिवस रात औ भोर, सूर्य भी सिकुड़ा सिमटा
आता है कुछ देर, गरम वस्त्रों में लिपटा।
सर्द हवा विकराल, गात अंतर तक चीरे  
लहर चली चहुं ओर, शीत की धीरे-धीरे।
 
जितना भागें शीत से, उतने होंगे तंग।
अच्छा है हम दोस्ती, कर लें उसके संग।
कर लें उसके संग, इस तरह हो तैयारी
ताप सखा हो साथ, धूप भी सखी हमारी।
सुख देगा ऋतु चक्र, कल्पना कहती इतना
होंगे उतने तंग, शीत से भागें जितना।  


-कल्पना रामानी

1 comment:

Unknown said...

13 दिसम्बर को लिखी आपकी यह रचना पढ़कर लग रहा है कि आज के लिए ही लिखी गयी है ..... आज यहाँ नीमच (म0प्र0) में वाकई सर्द हवा विकराल होकर ताप सब निगल गई है ...

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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