Tuesday 15 January 2013

सूरज निकला सैर को


सूरज निकला सैर को, बड़े जोश के साथ।
सहमी सहमी शीत ने, जोड़ लिए अब हाथ।
जोड़ लिए अब हाथ, विदाई सबसे माँगी
फि आने की बात,कही, ज़िद अपनीत्यागी।
समय हुआ अनुकूल, दिवस का पारा उछला,
बड़े जोश के साथ, सैर को सूरज निकला।
 
राहत दे दी सूर्य ने, आहत है अब ठंड।
बोरा बिस्तर बाँधके, छोड़ा राज अखंड।
छोड़ा राज अखंड, चली अपने घर वापस,
नव किरणों के साथ, उमंगें लाया तापस। 
सरल हुए सब काम, पूर्ण जन जन की चाहत।
आहत है अब ठंड, सूर्य ने दे दी राहत।

  तिल तिल करके बढ़ रहा, दिन दिनकर के साथ।
गुड पपड़ी तिल रेवड़ी, दीख रही हर हाथ।
दीख रही हर हाथ, हवा के छिड़े तराने।
ले पतंग औ डोर, सब चले पर्व मनाने।
लगा गगन में जाम,जमी हर छत पर महफिल,
दिन दिनकर के साथ, बढ़ रहा फिर से तिल तिल।

चलते चलते सूर्य ने, बदला अपना भेस।
जलावतन कर ठंड को, भेज दिया परदेस।
भेज दिया परदेस, देस में उत्सव जागा,
जन जन हुआ प्रसन्न, दुम दबा कुहरा भागा।
सौंप गई सौगात, शीत ऋतु ढलते ढलते,
बदला अपना भेस, सूर्य ने चलते चलते।
 
देखा फिर से  बाग में, चहल पहल थी आज।
सोचा अब तो शीत का, पूर्ण हो चुका राज।
पूर्ण हो चुका राज, बरस अगले आएगी,
पुनः नए उपहार, साथ अपने लाएगी।
शैशव तजकर सूर्य, छुएगा यौवन रेखा,
चहल पहल थी आज, बाग में फिर से देखा।

 ---कल्पना रामानी

2 comments:

Unknown said...

सूर्य ने दे दी राहत........वाह बहुत सुंदर कुण्डलियाँ.

संध्या सिंह said...

बहुत सुन्दर कुंडलियाँ .....भोर सुहानी हो गयी ..सचमुच कल्पना जी

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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